मैंने एक और स्त्री के संबंध में सुना है कि जब आपरेशन की टेबिल पर उसे
लिटाया गया तो उसने डाक्टर से कहा कि चीरा जरा लंबा मारना। अपेंडिक्स
निकाली जा रही थी। उसने कहा : लेकिन चीरा लंबा क्यों मारना। लोग तो कहते हैं कि चीरा जरा छोटा मारना कि पीछे उसका दिखावा न रह जाए, भद्दा न लगे। उसने कहा कि नहीं, तुम तो जितना बड़ा मार सको उतना मारना। क्योंकि मेरे
पति को भी चीरा लगा है, उससे बड़ा होना चाहिए। क्योंकि वह हमेशा अकड़ बताते
हैं कि देखो, कितना बड़ा चीरा लगा है! यह अकड़ मुझसे नहीं सही जाती।
आदमी के अहंकार अजीब हैं!
एक महिला मेरे पास आती थी। उसके पति ने मुझे फोन किया कि आप इसकी बातों का भरोसा मत करना। यह बढ़ा चढ़ा कर बातें करती है। इसको फूंसी हो जाए तो यह बताती है कैंसर हो गया। इसकी बातों का आप भरोसा मत करना। मैं इसके साथ तीस साल से रह रहा हूं। लोग बीमारियां बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं! फिर बीमारियां भी वे जिनकी प्रशंसा होती हो। लोगों को चिंता नहीं है कि जीवन के असली सवाल क्या हैं।
गुरजिएफ कहता था : पहले अपनी ठीक ठीक व्यवस्था पकड़ो। तुम्हारे जीवन की चिंता क्या है। असली सवाल क्या है। और अगर तुम न पकड़ पाओ, तो फिर मुझे कहना। बड़ा कठिन है पकड़ना कि हमारी बुनियादी भूल क्या है। तुम सोचते हो क्रोध। अकसर क्रोध बुनियादी भूल नहीं होती, क्योंकि क्रोध तो केवल छाया है अहंकार की।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम क्रोध से कैसे मुक्त हों। मैं उनसे पूछता हूं : यह तुम्हारी असली बीमारी है कि लक्षण। वे कहते हैं: यही हमारी बीमारी है। इसी से हम परेशान हैं। बहुत दु:ख होता है और बड़ी बेइज्जती भी होती है। और क्रोध आ जाता है तो लोग समझते हैं कि क्रोधी हैं। तो मैने कहा, तुम क्रोध से परेशान नहीं हो। एक तो क्रोध होता ही है अहंकार के कारण। फिर यह तुम जो पूछने मुझसे आए हो कि क्रोध न हो, यह भी अहंकार के लिए है ताकि लोगों में प्रतिष्ठा रहे, कि यह आदमी बड़ा विनम्र, बड़ा शांत, अक्रोधी, साधु! जिस अहंकार के कारण क्रोध पैदा हो रहा है उसी अहंकार के कारण तुम मेरे पास क्रोध का इलाज खोजने आए हो। और बीमारी दोनों के पीछे एक है। तो बीमारी हल कैसे होगी।
एक सज्जन मेरे पास आए। वे कहने लगे : बहुत चिंता मन में होती है, नींद भी नहीं आती। किसी तरह मेरी चिंता से मुझे छुटकारा दिलवा दें। मैंने तो सुना है कि ध्यान से चिंताएं मिट जाती हैं। मैंने उनसे पूछा कि जहां तक मैं समझता हूं, चिंता असली बात नहीं हो सकती। चिंता कभी असली बात नहीं होती। चिंता किस बात की होती है, वह मुझे कहो। चिंता अपने आप तो नहीं होती। कोई चिंता ऐसे आकाश से तो नहीं उतरती। किस बात की है। उन्होंने कहा: अब आप से क्या छिपाना! पहले डिप्टी मिनिस्टर था, फिर मिनिस्टर हो गया। आज दस साल से मिनिस्टर हूं। चीफ मिनिस्टर… मेरे पीछे के लोग चीफ मिनिस्टर हो गए। और मैं चीफ मिनिस्टर होने के पीछे पड़ा हूं, वह हल नहीं हो रहा है। वही मेरी चिंता है। आप मुझे चिंता से छुड़ा दें। एक दफे मेरी चिंता छूट जाए, तो मैं इन सब को दिखा दूं करके। क्योंकि इसी चिंता की वजह से मैं बीमार भी रहता हूं, अस्वस्थ भी रहता हूं। और जितनी ताकत लगानी चाहिए प्रतिस्पर्धा में, उतनी नहीं लगा पाता। दूसरे जो मेरे पीछे आए, वे आगे निकलते जा रहे हैं। और मैं जेल भी गया, बयालीस में भी गया, और उसके पहले भी गया।
और डण्डे भी खाए और सब तरह का कष्ट सहा। और अभी तक चीफ मिनिस्टर नहीं हुआ। और पीछे से लफंगे आए हैं, जो न कभी जेल गए, न कभी डण्डे खाए, न कोई कष्ट झेला, वे चीफ मिनिस्टर हो गए हैं। तो मैं क्या करूं।
मैंने उनसे कहा कि देखो, तुम कहीं और जाओ। क्योंकि जो मैं कहूंगा वह तुम झेल न सकोगे। महत्वाकांक्षा न छोड़ोगे तो चिंता नहीं छूट सकती। चिंता महत्वाकांक्षा का हिस्सा है। और महत्वाकांक्षा भी बहुत गहरे में बुनियादी नहीं है, अहंकार ही बुनियादी है। अपने रोगों को जरा पकड़ना, खोजना। तुम बड़े हैरान हो जाओगे कि तुम्हारे रोग वे नहीं हैं जैसे दिखाई पड़ते हैं। रोग के पीछे रोग हैं। उनके पीछे और रोग हैं। और जब तक बुनियाद न पकड़ ली जाए, तब तक कोई रूपांतरण नहीं होता।
ओशो
आदमी के अहंकार अजीब हैं!
एक महिला मेरे पास आती थी। उसके पति ने मुझे फोन किया कि आप इसकी बातों का भरोसा मत करना। यह बढ़ा चढ़ा कर बातें करती है। इसको फूंसी हो जाए तो यह बताती है कैंसर हो गया। इसकी बातों का आप भरोसा मत करना। मैं इसके साथ तीस साल से रह रहा हूं। लोग बीमारियां बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं! फिर बीमारियां भी वे जिनकी प्रशंसा होती हो। लोगों को चिंता नहीं है कि जीवन के असली सवाल क्या हैं।
गुरजिएफ कहता था : पहले अपनी ठीक ठीक व्यवस्था पकड़ो। तुम्हारे जीवन की चिंता क्या है। असली सवाल क्या है। और अगर तुम न पकड़ पाओ, तो फिर मुझे कहना। बड़ा कठिन है पकड़ना कि हमारी बुनियादी भूल क्या है। तुम सोचते हो क्रोध। अकसर क्रोध बुनियादी भूल नहीं होती, क्योंकि क्रोध तो केवल छाया है अहंकार की।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम क्रोध से कैसे मुक्त हों। मैं उनसे पूछता हूं : यह तुम्हारी असली बीमारी है कि लक्षण। वे कहते हैं: यही हमारी बीमारी है। इसी से हम परेशान हैं। बहुत दु:ख होता है और बड़ी बेइज्जती भी होती है। और क्रोध आ जाता है तो लोग समझते हैं कि क्रोधी हैं। तो मैने कहा, तुम क्रोध से परेशान नहीं हो। एक तो क्रोध होता ही है अहंकार के कारण। फिर यह तुम जो पूछने मुझसे आए हो कि क्रोध न हो, यह भी अहंकार के लिए है ताकि लोगों में प्रतिष्ठा रहे, कि यह आदमी बड़ा विनम्र, बड़ा शांत, अक्रोधी, साधु! जिस अहंकार के कारण क्रोध पैदा हो रहा है उसी अहंकार के कारण तुम मेरे पास क्रोध का इलाज खोजने आए हो। और बीमारी दोनों के पीछे एक है। तो बीमारी हल कैसे होगी।
एक सज्जन मेरे पास आए। वे कहने लगे : बहुत चिंता मन में होती है, नींद भी नहीं आती। किसी तरह मेरी चिंता से मुझे छुटकारा दिलवा दें। मैंने तो सुना है कि ध्यान से चिंताएं मिट जाती हैं। मैंने उनसे पूछा कि जहां तक मैं समझता हूं, चिंता असली बात नहीं हो सकती। चिंता कभी असली बात नहीं होती। चिंता किस बात की होती है, वह मुझे कहो। चिंता अपने आप तो नहीं होती। कोई चिंता ऐसे आकाश से तो नहीं उतरती। किस बात की है। उन्होंने कहा: अब आप से क्या छिपाना! पहले डिप्टी मिनिस्टर था, फिर मिनिस्टर हो गया। आज दस साल से मिनिस्टर हूं। चीफ मिनिस्टर… मेरे पीछे के लोग चीफ मिनिस्टर हो गए। और मैं चीफ मिनिस्टर होने के पीछे पड़ा हूं, वह हल नहीं हो रहा है। वही मेरी चिंता है। आप मुझे चिंता से छुड़ा दें। एक दफे मेरी चिंता छूट जाए, तो मैं इन सब को दिखा दूं करके। क्योंकि इसी चिंता की वजह से मैं बीमार भी रहता हूं, अस्वस्थ भी रहता हूं। और जितनी ताकत लगानी चाहिए प्रतिस्पर्धा में, उतनी नहीं लगा पाता। दूसरे जो मेरे पीछे आए, वे आगे निकलते जा रहे हैं। और मैं जेल भी गया, बयालीस में भी गया, और उसके पहले भी गया।
और डण्डे भी खाए और सब तरह का कष्ट सहा। और अभी तक चीफ मिनिस्टर नहीं हुआ। और पीछे से लफंगे आए हैं, जो न कभी जेल गए, न कभी डण्डे खाए, न कोई कष्ट झेला, वे चीफ मिनिस्टर हो गए हैं। तो मैं क्या करूं।
मैंने उनसे कहा कि देखो, तुम कहीं और जाओ। क्योंकि जो मैं कहूंगा वह तुम झेल न सकोगे। महत्वाकांक्षा न छोड़ोगे तो चिंता नहीं छूट सकती। चिंता महत्वाकांक्षा का हिस्सा है। और महत्वाकांक्षा भी बहुत गहरे में बुनियादी नहीं है, अहंकार ही बुनियादी है। अपने रोगों को जरा पकड़ना, खोजना। तुम बड़े हैरान हो जाओगे कि तुम्हारे रोग वे नहीं हैं जैसे दिखाई पड़ते हैं। रोग के पीछे रोग हैं। उनके पीछे और रोग हैं। और जब तक बुनियाद न पकड़ ली जाए, तब तक कोई रूपांतरण नहीं होता।
ओशो
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