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Sunday, August 9, 2015

धार्मिक पागल

एक महिला मेरे पास आई और उसने कहा कि कोई भी तरह बचाओ, मेरे पति धार्मिक हो गए हैं। हम घर भर मुसीबत में पड़ गए हैं। फिर वे साधारण पति भी न थे, सरदार थे। मैंने कहा कि क्या कर रहे हैं वे? ऐसी क्या तकलीफ आ गई? तो वह कहने लगी कि दो बजे रात से उठ कर कीर्तन करते हैं, तो कोई सो ही नहीं पा रहा है। बच्चों की परीक्षा करीब आ रही है, बच्चे सिर पीट रहे हैं। मगर वे हैं धार्मिक और वे दो बजे रात से कीर्तन करते हैं।

तो मैंने उनके पति को बुलाया। मैंने कहा कि यह क्या कर रहे है? वे कहने लगे कि ब्रह्म-मुहूर्त में कीर्तन करता हूं! दो बजे रात ब्रह्म-मुहूर्त! वे कहने लगे कि ब्रह्म-मुहूर्त में सबको उठना ही चाहिए, इसमें बाधा का क्या सवाल है? मुझसे बोले कि आप उन लोगों की बातो में मत पड़ना, सब अधार्मिक हैं, दुष्ट हैं कीर्तन में बाधा डालते हैं, धार्मिक कार्य में अड़चन खड़ी करते हैं।

अब वे सारे घर की निंदा में हैं। और जिससे भी कहेंगे कि ब्रह्म-मुहूर्त में कीर्तन करो, तो किसी की हिम्मत नहीं है उनसे कहने की कि आप बंद करो। क्योंकि कौन अधार्मिक बनेगा! तो मैंने उनसे कहा कि ऐसा करो, बंद न करो, ब्रह्म-मुहूर्त को थोड़ा नीचे सरकाओ। दो बजे जरा ज्यादा ब्रह्म-मुहूर्त है, थोड़ा तीन बजे करो। फिर और सरका कर चार बजे करना, फिर पांच बजे करना। कहने लगे कि आप क्या कहते हैं? कहां तक इसको सरकाना है?
मैंने कहा कि मैं ब्रह्म-मुहूर्त उसको कहता हूं जब तुम्हारे भीतर छिपे हुए ब्रह्म की आख खुले। और किसी उपाय को मैं ब्रह्म-मुहूर्त नहीं कहता। तुम सोए रहना, जब नींद अपने आप खुले। अभी तुम अलार्म भर कर उठते हो, यह ब्रह्म-मुहूर्त नहीं है, अलार्म-मुहूर्त है। तुम इसको बंद करो। जब तुम्हारे भीतर जो ब्रह्म छिपा है, उसकी जब नींद खुले, तब तुम ब्रह्म-मुहूर्त समझना। वे कहने लगे, आप मुझे भ्रष्ट कर देंगे! मैं तो फिर नौ बजे के पहले उठ ही नहीं सकता। तो मैंने कहा, जब तुम नहीं उठ सकते, तो बच्चों का भी थोड़ा ध्यान करो। और तुम्हें अध्यात्म की खोज पैदा हो गई, उनको अभी पैदा नहीं हुई, उनको क्यों परेशान कर रहे हो? और तुम्हारी वजह से ये बच्चे अध्यात्म से सदा के लिए सचेत हो जाएंगे। ये बच्चे कभी भूल कर धर्म की तरफ न जाएंगे। तुम इसके जिम्मेवार रहोगे। क्योंकि तुम उनकी जिंदगी खराब किए दे रहे हो। जब भी कोई धर्म की बात करेगा, ये समझेंगे कि दो बजे रात का ब्रह्म-मुहूर्त है। इस बात में पड़ना ही नहीं। और तुम इनको निंदित कर रहे हो और पागल तुम हो। और तुम कह रहे हो कि ये तुम्हें अशांत करते हैं, बाधा डालते हैं; अशांत तुम इन्हें कर रहे हो।
 
यह जो धर्म है, यह करीब-करीब विक्षिप्त लोग इसमें बड़े आकर्षित होते हैं। क्योंकि धार्मिकता की आड़ में विक्षिप्तता को छिपाना इतना आसान है कि जिसका हिसाब नहीं। और हजार तरह के रोग लोग धर्म की आड़ में छिपा लेते हैं। अगर आपको गंदा रहने में रस है- और मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे कुछ लोग हैं, जिनको शरीर की गंदगी में वासना हैं-तो फिर आप कोई ऐसा मार्ग चुन लें। कोई जैनों के साधु हो जाएं, जिसमें नहाने वगैरह की मनाही है। तो फिर आप गंदगी में जो मजा लेंगे! और आपके पास अगर कोई भी थोड़ा स्वच्छ आदमी आ गया, तो आप उसको निंदा से देख सकते हैं। नहाया धोया तो वासनातुर है, क्योंकि शरीर की इतनी सजावट कर रहा है। नहाना  धोना शरीर की सजावट है। गंदे होना, दातुन न करना, मुंह से बास निकल रही हो, ये पुण्य कर्म हैं!

पागल इस तरह के लोग हैं। पश्चिम में इनका इलाज होता है। यहां वे कोई तरकीब खोज कर धार्मिक हो जाते हैं। पश्चिम में कोई आदमी अगर ऐसी हरकत करे, तो उसका इलाज होने के लिए फौरन वे चिकित्सक के पास ले जाएंगे, मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएंगे, कि इसमें कुछ गड़बड़ हो गई। लेकिन यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई। यहां उसको हम स्वीकार कर लेंगे।

साधना सूत्र

ओशो 


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