न तो आज जमीन पर हिंदू हैं, न मुसलमान, न बौद्ध। आज कैदी हैं। कोई
हिंदू कैदखाने में है, कोई मुसलमान कैदखाने में है, कोई जैन कैदखाने में
है।
कैदखाना इसलिए कहता हूं कि आपने कभी सोचा ही नहीं कि आपको जैन होना है, कि हिंदू होना है, कि मुसलमान होना है। आपने चुना नहीं है। यह आपकी गुलामी है। लेकिन गुलामी इतनी सूक्ष्म है कि आपको पता नहीं चलता, क्योंकि आपके होश में नहीं डाली गई है। जब आप बेहोश थे, तब यह गुलामी, यह जंजीर आपके हाथ में पहना दी गई। जब आपको होश आया तो आपने जंजीर अपने हाथ में ही पाई। और इसे जंजीर भी नहीं कहा जाता है। इसे आपके मां बाप ने, परिवार ने, समाज ने समझाया है कि यह आभूषण है! आप इसको सम्हालते हैं, कोई तोड़ न दे। यह आभूषण है और बड़ा कीमती है, आप इसके लिए जान लगा देंगे।
एक बड़े मजे की घटना घटती है। अगर हिंदू धर्म पर खतरा हो तो आप अपनी जान लगा सकते हैं। आप हिंदू धर्म, मुसलमान या ईसाई, किसी भी धर्म के लिए मर सकते हैं, लेकिन जी नहीं सकते। अगर आपसे कहा जाए कि जीवन हिंदू की तरह जीयो, तो आप जीने को राजी नहीं हैं। मुसलमान की तरह जीयो, जीने को राजी नहीं हैं। लेकिन अगर झगड़ा-फसाद हो तो आप मरने के लिए राजी हैं! वह आदमी हिंदू धर्म के लिए मरने के लिए राजी है, जो हिंदू धर्म के लिए जीने के लिए कभी राजी नहीं था! क्या मामला है?
कहीं कोई रोग है, कहीं कोई बीमारी है। जीने के लिए हमारी कोई उत्सुकता नहीं है। मार-काट के लिए हम उत्सुक हो जाते हैं। क्योंकि जैसे ही कोई हमारे धर्म पर हमला करता है, हमें होश ही नहीं रह जाता। वह हमारा बेहोश हिस्सा है, जिस पर हमला किया जा रहा है।
इसलिए जब भी हिंदू-मुसलमान लड़ते हैं, तो आप यह मत समझना कि वे होश में लड़ रहे हैं। वे बेहोशी में लड़ रहे हैं। बेहोशी में वे हिंदू-मुसलमान हैं, होश में नहीं हैं। इसलिए कोई भी उनके अचेतन मन को चोट कर दे, तो बस वे पागल हो जाएंगे। न तो हिंदू लड़ते हैं, न मुसलमान लड़ते हैं-पागल लड़ते हैं। कोई हिंदू मार्का पागल है। कोई मुसलमान मार्का पागल है। यह मार्कों का फर्क है, लेकिन पागल है।
और आपके भीतर धर्म उस समय डाला जाता है, जब तर्क की कोई क्षमता नहीं होती।
इसलिए मैं कहता हूं कि यह सबसे बड़ा पाप है। और जब तक यह पाप बंद नहीं होता, जब तक हम प्रत्येक व्यक्ति को अपने मार्ग की खोज की स्वतंत्रता नहीं देते, तब तक दुनिया धार्मिक नहीं हो सकेगी। क्योंकि धार्मिक होने के लिए स्वयं का निर्णय चाहिए।
साधना सूत्र
ओशो
कैदखाना इसलिए कहता हूं कि आपने कभी सोचा ही नहीं कि आपको जैन होना है, कि हिंदू होना है, कि मुसलमान होना है। आपने चुना नहीं है। यह आपकी गुलामी है। लेकिन गुलामी इतनी सूक्ष्म है कि आपको पता नहीं चलता, क्योंकि आपके होश में नहीं डाली गई है। जब आप बेहोश थे, तब यह गुलामी, यह जंजीर आपके हाथ में पहना दी गई। जब आपको होश आया तो आपने जंजीर अपने हाथ में ही पाई। और इसे जंजीर भी नहीं कहा जाता है। इसे आपके मां बाप ने, परिवार ने, समाज ने समझाया है कि यह आभूषण है! आप इसको सम्हालते हैं, कोई तोड़ न दे। यह आभूषण है और बड़ा कीमती है, आप इसके लिए जान लगा देंगे।
एक बड़े मजे की घटना घटती है। अगर हिंदू धर्म पर खतरा हो तो आप अपनी जान लगा सकते हैं। आप हिंदू धर्म, मुसलमान या ईसाई, किसी भी धर्म के लिए मर सकते हैं, लेकिन जी नहीं सकते। अगर आपसे कहा जाए कि जीवन हिंदू की तरह जीयो, तो आप जीने को राजी नहीं हैं। मुसलमान की तरह जीयो, जीने को राजी नहीं हैं। लेकिन अगर झगड़ा-फसाद हो तो आप मरने के लिए राजी हैं! वह आदमी हिंदू धर्म के लिए मरने के लिए राजी है, जो हिंदू धर्म के लिए जीने के लिए कभी राजी नहीं था! क्या मामला है?
कहीं कोई रोग है, कहीं कोई बीमारी है। जीने के लिए हमारी कोई उत्सुकता नहीं है। मार-काट के लिए हम उत्सुक हो जाते हैं। क्योंकि जैसे ही कोई हमारे धर्म पर हमला करता है, हमें होश ही नहीं रह जाता। वह हमारा बेहोश हिस्सा है, जिस पर हमला किया जा रहा है।
इसलिए जब भी हिंदू-मुसलमान लड़ते हैं, तो आप यह मत समझना कि वे होश में लड़ रहे हैं। वे बेहोशी में लड़ रहे हैं। बेहोशी में वे हिंदू-मुसलमान हैं, होश में नहीं हैं। इसलिए कोई भी उनके अचेतन मन को चोट कर दे, तो बस वे पागल हो जाएंगे। न तो हिंदू लड़ते हैं, न मुसलमान लड़ते हैं-पागल लड़ते हैं। कोई हिंदू मार्का पागल है। कोई मुसलमान मार्का पागल है। यह मार्कों का फर्क है, लेकिन पागल है।
और आपके भीतर धर्म उस समय डाला जाता है, जब तर्क की कोई क्षमता नहीं होती।
इसलिए मैं कहता हूं कि यह सबसे बड़ा पाप है। और जब तक यह पाप बंद नहीं होता, जब तक हम प्रत्येक व्यक्ति को अपने मार्ग की खोज की स्वतंत्रता नहीं देते, तब तक दुनिया धार्मिक नहीं हो सकेगी। क्योंकि धार्मिक होने के लिए स्वयं का निर्णय चाहिए।
साधना सूत्र
ओशो
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