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Sunday, August 9, 2015

अपने मार्ग की शोध करो— यह सूत्र का अर्थ है.....


……ड़रो मत, भयभीत मत होओ। और जरूरी नहीं है कि जिस धर्म में आप संयोग से पैदा हुए हैं और जो संस्कार आप पर डाल दिए गए हैं, वे आपके काम के हों। यह भी जरूरी नहीं है। काम के भी न हों, खतरनाक भी हों, बाधा भी हों, क्योंकि…….इसे थोड़ा सोचें।

मीरा है; नाचती है, गाती है। उसकी समाधि नृत्य बन गई है। आप महावीर को नाचता हुआ सोच सकते हैं कि नाच रहे हैं महावीर? तो बहुत बेतुका लगेगा। सोचने में ही बेतुका लगेगा कि महावीर और नाच रहे हैं। जंचेगी नहीं बात, कल्पना भी करनी मुश्किल है। अभी तक किसी ने सपना भी नहीं देखा कि महावीर नाच रहे हैं, मोर मुकुट बांधे हुए हैं। वे बड़े बेतुके लगेंगे, बड़े हास्यास्पद मालूम होंगे। लेकिन मीरा अगर न नाचे, और बैठ जाए महावीर की तरह, पत्थर की मूर्ति बन कर वृक्ष के नीचे, तो भी न जंचेगी। मीरा का व्यक्तित्व, महावीर के व्यक्तित्व से अलग है। उसका मोक्ष नृत्य के मार्ग से ही आएगा। महावीर का मोक्ष मौन, शांत, स्थिर हो कर ही आएगा। और दोनों मोक्ष की तरफ जाएंगे, लेकिन अपने-अपने ढंग से जाएंगे।

कृष्ण और क्राइस्ट को साथ साथ खड़ा करके सोचो तो बड़ी मुश्किल होती है। जीसस को मानने वाले कहते हैं कि क्राइस्ट कभी हंसे नहीं। क्योंकि जगत में इतनी पीड़ा है, इतना दुख है- कैसे हंसे? परमज्ञानी कैसे हंसेगा? और इधर कृष्ण हैं कि नाच रहे हैं, बांसुरी बजा रहे हैं, गोपियों के साथ रास चल रहा है। तो जीसस का मानने वाला सोच ही नहीं सकता कि कृष्ण कोई परमज्ञानी हो सकते हैं। क्योंकि यह इतनी प्रसन्नता परमज्ञानी को शोभा नहीं देती। और कृष्ण का मानने वाला यह नहीं सोच सकता कि यह उदास, लंबे चेहरे वाला आदमी जीसस, यह परमज्ञानी हो सकता है। ऐसी उदासी, मुर्दगी, यह परमज्ञानी को शोभा नहीं देती। परमज्ञानी तो आनंद से भरपूर हो जाना चाहिए।

लेकिन क्राइस्ट भी पहुंचते हैं अपने रास्ते से। जगत की पीड़ा के साथ जो अपने को तादात्म्य कर लेता है, सारे जगत की पीड़ा जो अपने ऊपर ले लेता है, जो अपने को भूल ही जाता है और सारे जगत की पीड़ा से एक हो जाता है, वह भी पहुंचता है। वह भी एक मार्ग है।
 
और जो सारी पीड़ा को भूल ही जाता है, आनंद में इतना लीन हो जाता है कि इस जगत में पीड़ा है, इसका जिसे पता भी नहीं चलता है, जो इस अस्तित्व के उत्सव के साथ एक रस हो जाता है, जो रास में डूब जाता है, वह भी पहुंच जाता है। लेकिन पहुंचने के रास्ते अलग अलग हैं।

अब मैं यह इसलिए कह रहा हूं कि अगर आपका रास्ता नृत्य का हो और आप महावीर के मानने वालों के घर में पैदा हो गए, तो आप मुश्किल में पड़ेंगे। क्योंकि आपका कहीं तालमेल नहीं बैठेगा। मीरा के घर में पैदा हो गए, तब तो ठीक, नहीं तो आपका कोई तालमेल नहीं बैठेगा। आप हमेशा पाएंगे कि आप कहीं न कहीं, कोई मेल ही नहीं बैठ रहा है। और चेतन मन में आप समझेंगे कि आप जैन हैं, और आपके पूरे व्यक्तित्व का ढांचा जो है, वह किसी भक्त का है, तो आप अड़चन में पड़ेंगे। अगर आप महावीर जैसे व्यक्तित्व के आदमी हैं और कहीं कृष्ण को मानने वालों के घर में पैदा हो गए, तो ऊपर से आपको लगेगा कि ठीक है और भीतर से लगेगा सब गलत है। तो आप पाखंडी हो जाएंगे। जो आप करेंगे, वह आपके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाएगा, इसलिए वास्तविक, प्रामाणिक नहीं होगा। और जो आप करना चाहेंगे, वह आप कर न सकेंगे, क्योंकि वह आपके संस्कार से विपरीत पड़ जाएगा।

साधना सूत्र

ओशो 

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