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Sunday, August 9, 2015

हिंदू मुस्लिम भाई-भाई


सभी धर्मों का अध्ययन करना जरूरी है, लेकिन चुनाव स्वयं का होना चाहिए, कोई दूसरा चुनाव न करे। अच्छी दुनिया पैदा हो सकती है। सब धर्म वैसे ही पढ़ाए जाएं और खुला छोड़ दिया जाए व्यक्ति को कि वह अपनी खोज कर ले। और वह जो भी खोज ले, उसका स्वागत हो।

इसके गहरे परिणाम होंगे। इससे एक तो धर्म के प्रति जो बगावत पैदा हो जाती है, वह पैदा नहीं होगी। दुनिया से नास्तिक कम हो जाएंगे। नास्तिकता पैदा होती है जबर्दस्ती थोपी गई आस्तिकता की प्रतिक्रिया में। दुनिया से नास्तिकता कम हो जाएगी। दुनिया से तालमेल न बैठने वाली व्यवस्था क्षीण हो जाएगी। जिससे तालमेल बैठेगा, वही हम चुनेंगे। एक रस पैदा होगा, एक प्रेम पैदा होगा। जो हमने चुना है, वह हमारी निजी खोज होगी। जो मेरी खोज है, उसमें मुझे रस होता है। जो मेरा आविष्कार है, उसमें मुझे आनंद होता है। उसके लिए मैं सब कुछ दांव पर लगा सकता हूं। और जब तक हम सब दांव पर लगा न सकें अपने धर्म के लिए, तब तक हमारे जीवन में कोई क्रांति घटित नहीं होती।

तीसरा, एक-एक घर में अनेक धर्मों के लोग हो जाएंगे। दुनिया से दंगे फसाद समाप्त हो सकते हैं। एक ही उपाय है कि एक घर में कई धर्मों के लोग हों, बस। और कोई उपाय नहीं है। कि बाप ईसाई हो, कि बेटा जैन हो, कि पत्नी मुसलमान हो, कि एक बहू बौद्ध हो, कि एक बहू कन्‍फ्यूशियन हो एक घर में अनेक धर्मों के लोग हों, तो दंगा नहीं हो सकता। किससे लड़ने जाइएगा? अगर हिंदू मुस्लिम दंगा हो जाए तो क्या करिएगा फिर? आपकी पत्नी मुसलमान है, वह मुसलमान के साथ खड़ी होगी; आपका बेटा बौद्ध है, वह बौद्ध के साथ खड़ा होगा, आपका भाई जैन है, वह जैन के साथ खड़ा होगा-घर में कैसे पाकिस्तान काटिएगा बहुत मुश्किल हो जाएगा।

जब तक पूरा का पूरा घर एक धर्म में है, तब तक दुनिया से दंगे-फसाद बंद नहीं हो सकते। क्योंकि आप बच सकते हैं आसानी से। जिनसे आपका लगाव है, वे सब आपके धर्म के हैं। जिनसे आपका संबंध है, प्रेम है, वे सब आपके धर्म के हैं। लेकिन अगर एक घर में दस धर्मों के लोग हैं, तो आपका अपनी पत्नी से प्रेम है और वह मुसलमान है, तो आप मुसलमान से लड़ नहीं सकते।

चाहे कोई कितना ही चिल्लाए हिंदू मुस्लिम भाई- भाई, और कोई कितना ही कहे अल्लाह-ईश्वर तेरे नाम-सब व्यर्थ है, इन बातों से कुछ होने वाला नहीं है। जब तक कि एक-एक घर की प्रेम की व्यवस्था में अनेक धर्म प्रविष्ट न हो जाएं, तब कहने की जरूरत न होगी कि हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई, वे होंगे।

यह तो कहना पड़ता है इसलिए कि वे नहीं हैं। यह झूठ है, यह सरासर व्यर्थ है, यह ऊपर से थोपा हुआ है। और चालबाजी है। और राजनीति के सिवाय कुछ भी नहीं है।

साधना सूत्र
ओशो 

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