और अक्सर ऐसा होता है कि जिनके जीवन में प्रेम का कोई
अनुभव नहीं है, वे प्रेम के संबंध में काफी चर्चा करते हैं। कारण है उसका,
क्योंकि चर्चा से ही वे मन को भरते हैं। प्रेम तो है नहीं जीवन में, प्रेम
की चर्चा करके ही थोड़ा बहुत रस ले लेते हैं।
अक्सर प्रेम की कविताएं लिखने वाले वे ही लोग होते हैं, जिनके जीवन में प्रेम का कोई अनुभव नहीं होता। सब्स्टीटयूट है, वह कविता जो है। वह जो प्रेम में उन्होंने किया होता, वह नहीं कर पाए हैं, वह शब्दों में कर रहे हैं। इसलिए आप प्रेम की कविता पढ़ कर उस कविता के लिखने वाले कवि से मिलने मत चले जाना, नहीं तो बड़ी निराशा होगी। वहां बिलकुल दूसरा ही आदमी आप पाएंगे।
जीवन सिर्फ बुद्धि से समझ में आने वाला होता, दूर खड़े हो कर, तो फिर दर्शक भी जीवन को जान लेते, फिर भोक्ता होने की कोई जरूरत न थी। फिर तो राहगीर भी किनारे से गुजर कर जिंदगी को पहचान लेते, फिर तो जिंदगी में डुबकी लगाने की और एकरस होने की कोई जरूरत न होती। लेकिन राहगीर कुछ भी नहीं जान पाते। वे जो किनारे खड़े हुए लोग हैं, उनको ऊपर ऊपर की चीजें दिखाई पड़ती हैं, भीतर जो घट रहा है, वह आंखों से चूक जाता है।
साधना सूत्र
ओशो
अक्सर प्रेम की कविताएं लिखने वाले वे ही लोग होते हैं, जिनके जीवन में प्रेम का कोई अनुभव नहीं होता। सब्स्टीटयूट है, वह कविता जो है। वह जो प्रेम में उन्होंने किया होता, वह नहीं कर पाए हैं, वह शब्दों में कर रहे हैं। इसलिए आप प्रेम की कविता पढ़ कर उस कविता के लिखने वाले कवि से मिलने मत चले जाना, नहीं तो बड़ी निराशा होगी। वहां बिलकुल दूसरा ही आदमी आप पाएंगे।
जीवन सिर्फ बुद्धि से समझ में आने वाला होता, दूर खड़े हो कर, तो फिर दर्शक भी जीवन को जान लेते, फिर भोक्ता होने की कोई जरूरत न थी। फिर तो राहगीर भी किनारे से गुजर कर जिंदगी को पहचान लेते, फिर तो जिंदगी में डुबकी लगाने की और एकरस होने की कोई जरूरत न होती। लेकिन राहगीर कुछ भी नहीं जान पाते। वे जो किनारे खड़े हुए लोग हैं, उनको ऊपर ऊपर की चीजें दिखाई पड़ती हैं, भीतर जो घट रहा है, वह आंखों से चूक जाता है।
साधना सूत्र
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