वर्तमान मन की मृत्यु है। भविष्य और अतीत मन का जीवन है। न तो अतीत
है–जा चुका, न भविष्य है–अभी आया भी नहीं। मन जीता ही,’’ नहीं’’ में है।
मन का स्वभाव नकार है—अनस्तित्व, अभाव। मन नास्तिक है। इसलिए मन से कोई कभी
आस्तिक नहीं हो पाता। मन के आस्तिक तुम्हें बहुत दिखाई
पड़ेंगे–मंदिरों-मस्जिदों में बैठे हैं, पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन पूजा-पाठ
वे कर नहीं रहे हैं, उनका मन कहीं और भी आगे गया है। कोई स्वर्ग को मांगता
होगा, कोई पुण्य के फल मांगता होगा। कोई परलोक के सुख मांगता होगा, कोई इसी
लोक के सुख मांगता होगा, लेकिन मन कहीं और जा चुका है।
मन न हो, तो पूजा। मौन पूजा होगी। मन न हो, तो पूजा होगी, तो प्रार्थना होगी, तो ध्यान होगा। जहां मन नहीं वहीं मंदिर शुरू होता है–मन की मौत पर।
ओशो
मन न हो, तो पूजा। मौन पूजा होगी। मन न हो, तो पूजा होगी, तो प्रार्थना होगी, तो ध्यान होगा। जहां मन नहीं वहीं मंदिर शुरू होता है–मन की मौत पर।
ओशो
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