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Thursday, August 6, 2015

उत्तेजना हर चीज को साधारण कर देती है

……जब कि जगत बिलकुल असाधारण है। जो फूल आपको वृक्ष पर दिखाई पड़ रहा है, वैसा फूल कभी नहीं खिला था। वह फूल बिलकुल नया है। उस तरह का दूसरा फूल पूरी पृथ्वी पर खोजना असंभव है। उस तरह का फूल कभी इतिहास में न हुआ और न कभी आगे होगा। ऐसे अद्वितीय फूल के होने की घटना को भी हमारी आंखें साधारण कर देती हैं, कह देती हैं कि ठीक है, गुलाब का फूल है, हजारों देखे हैं।
वह जो हजारों देखे हैं, उनकी वजह से आंखें अंधी हो गई हैं, और यह जो सामने मौजूद है, यह दिखाई नहीं पड़ता। उन हजारों से इस फूल का क्या संबंध है?

इमर्सन ने लिखा है कि इस गुलाब के फूल को देख कर मुझे खयाल आया कि इस गुलाब के फूल को तो कोई भी पता नहीं है हजारों फूलों का-न आने वाले फूलों का, न जा चुके फूलों का-यह गुलाब का फूल तो परमात्मा के लिए सीधा मौजूद है। और यह फूल इसीलिए आनंदित है, क्योंकि कोई तुलना नहीं है। लेकिन जब मैं इसे देखता हूं तो हजारों फूल जो मैंने देखे हैं, बीच में आ जाते हैं। आंखें धुंधली हो जाती हैं, यह फूल की अनूठी घटना व्यर्थ हो जाती है। इससे न कोई सौंदर्य का अनुभव होता, और न हृदय के कोई तार हिलते, न कोई में आ कंपता।
हम एक असाधारण जगत में जी रहे हैं। यहां चारों तरफ विराट मौजूद है न मालूम कितने रूपों में। यहां परम-सौंदर्य घटित हो रहा है, परम संगीत बज रहा है, नाद का कोई अंत नहीं है। लेकिन हम बहरे अंधे की तरह इस सबके बीच से गुजर जाते हैं। हमें कुछ भी छूता नहीं। हम मरी हुई लाशें हैं। हमने अपनी इंद्रियों को कब्रें बना लिया है। हम उनके भीतर घिरे हैं, ताबूत की तरह बंद हैं। हम गुजर रहे हैं  हमें कुछ छूता नहीं, कुछ अनुभव नहीं होता। और हम पूछते हैं, आनंद कहां है? और हम पूछते हैं, परमात्मा कहां है? और वह चारों तरफ मौजूद है। बाहर  भीतर उसके अतिरिक्त कोई भी नहीं है। और ऐसा कोई क्षण नहीं है, जो आनंद का क्षण न हो। लेकिन अनुभव करने वाला चाहिए। और अनुभव करने वाले को हम उत्तेजना में मार डालते हैं।


 साधना सूत्र

ओशो 

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