प्रार्थना का सारा परिणाम आप पर होता है। प्रार्थना से सूर्य नहीं
बदलता, आप बदलते हैं। प्रार्थना से जगत नहीं बदलता, आप बदलते हैं। लेकिन
आपके बदलते ही दूसरे जगत में आपका प्रवेश हो जाता है। प्रार्थना आमतौर से
जब आप करते हैं तो यही सोचते हैं कि कोई कुछ करेगा, इसलिए प्रार्थना कर रहे
हैं। न, प्रार्थना है एक उपाय, एक डिवाइस। हाथ तो आप जोड़ते हैं किसी और के
सामने, लेकिन जो परिणाम होता है वह होता है भीतर जिसने हाथ जोड़े हैं, उस
पर।
इसलिए बड़ी कठिनाई होती है। अगर आप वैज्ञानिक के सामने कहें कि हे सूर्य, सहायता कर! तो वह कहेगा, मूढूता की बात है; क्या सूर्य तुम्हारी सहायता करेगा? और कब किसकी सहायता की? कि हे इंद्र, वर्षा कर! पागल हो गए हो? प्रार्थनाओं से कहीं वर्षाएं हो गई हैं?
वैज्ञानिक ठीक कहता है। न तो सूर्य आपकी सुनेगा, न बादल आपकी सुनेंगे, न हवा आपकी सुनेगी; कोई आपकी नहीं सुनेगा। लेकिन आपने पुकारा, यह आपको बदल जाएगा। आपने कितनी जोर से पुकारा, उतनी गहरी स्प आपके भीतर प्रवेश हो जाएगी। अगर आपके पूरे प्राण पुकार उठे, तो आप दूसरे ही आदमी हो जाएंगे।
इसलिए है प्रार्थना।
ओशो
इसलिए बड़ी कठिनाई होती है। अगर आप वैज्ञानिक के सामने कहें कि हे सूर्य, सहायता कर! तो वह कहेगा, मूढूता की बात है; क्या सूर्य तुम्हारी सहायता करेगा? और कब किसकी सहायता की? कि हे इंद्र, वर्षा कर! पागल हो गए हो? प्रार्थनाओं से कहीं वर्षाएं हो गई हैं?
वैज्ञानिक ठीक कहता है। न तो सूर्य आपकी सुनेगा, न बादल आपकी सुनेंगे, न हवा आपकी सुनेगी; कोई आपकी नहीं सुनेगा। लेकिन आपने पुकारा, यह आपको बदल जाएगा। आपने कितनी जोर से पुकारा, उतनी गहरी स्प आपके भीतर प्रवेश हो जाएगी। अगर आपके पूरे प्राण पुकार उठे, तो आप दूसरे ही आदमी हो जाएंगे।
इसलिए है प्रार्थना।
ओशो
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