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Sunday, August 2, 2015

स्मृतिभ्रंश

तुमने कभी खयाल किया?.. तुम अगर रिश्वत ले लेते हो, तो मजबूरी, क्या करें, तनख्वाह से काम नहीं चलता। लेना तुम चाहते नहीं, लेकिन मजबूरी है, बाल-बच्चे हैं, घर-द्वार है, चलाना है। जानते हो, गलत है–मगर इतना भी तुम जानते हो कि अपराध तुमने नहीं किया, तुम क्या करो, समाज ने मजबूर कर दिया है। दूसरा जब रिश्वत लेता है तब अपराध है। तब तुम बस शोरगुल मचाते हो। वस्तुत : तुम्हारा शोरगुल उतना ही बड़ा होता है जितनी तुमने भी रिश्वत ली होती। अपनी भूल को छोटा करने के लिए तुम दूसरे की भूल को बड़ा-बड़ा करके दिखाते हो। तुम संसार में सबकी निंदा करते रहते हो। वही तुम भी करते हो, अन्यथा तुम भी नहीं कर रहे हो।
दूसरे का बेटा असफल हो जाता है, तुम समझते हो, बुद्धिहीन, तुम्हारा बेटा असफल हो जाता है तो शिक्षक की शरारत!

मेरे पास मां-बाप आ जाते हैं, वे कहते हैं, हमारा बेटा फेल कर दिया, जरूर कोई साजिश है। जो भी फेल होता है, वह कहता है साजिश है, लेकिन दूसरे जो फेल हुए हैं, उनकी बुद्धि ही नहीं तो क्या करेंगे! तुम क भी गौर करना, मोह तुम्हारी आंख से न्याय को छीन लेता है। काम, क्रोध, मोह, स्मृति भ्रंश। स्मृति  भ्रंश बड़ा महत्वपूर्ण शब्‍द है। बुद्ध ने जिसे सम्यक स्मृति कहा है, यह उसकी विपरीत अवस्‍था है-स्मृति भ्रंश उसकी विपरीत अवस्‍था है। जिसको गुरजिएफ ने सैल्फ- रिमेम्बरिंग कहा है, आत्म-स्मरण, स्मृति भ्रंश उसकी विपरीत अवस्‍था है। जिसे कृष्णमूर्ति अवेयरनेस कहते हैं, स्मृति भ्रंश उसकी विपरीत अवस्था है। जिसको नानक ने, कबीर ने सुरति कहा है, स्मृतिभ्रंश उसकी उलटी अवस्‍था है।

सुरति स्मृति का ही रूप है। सुरतियोग का अर्थ है : स्मृतियोग—ऐसे जीन कि होश रहे, प्रत्येक कृत्य होश हो, उठो तो जानते हुए, बैठो तो जानते हुए।

एक छोटा सा प्रयोग करो। आज जब तुम्हें फुर्सत मिले घंटेभर की, तो अपने कमरे में बैठ जाना द्वार बंद करके और एक क्षण को सारे शरीर को झकझोरकर हो होश को जगाने की कोशिश करना बस एक क्षण को तुम बिलकुल परिपूर्ण होश से भरे हो बैठे हो, आसपास आवाज चल रही है, सड़क पर लोग चल रहे हैं, हृदय धड़क रहा है, सांस ली जा रही है तुम सिर्फ होश मात्र हो -एक क्षण के लिए। सारी स्थिति के प्रति होश से भर जाना, फिर उसे भूल जाना, फिर अपने काम में लग जाना। फिर घंटे भर बाद दुबारा कमरे में जाकर, फिर द्वार बंद करके, फिर एक क्षण को अपने होश को जगाना-तब तुम्हें एक बात हैरान करेगी कि बीच का जो घंटा था, वह तुमने बेहोश में बिताया, तब तुम्हें अपनी बेहोशी का पता चलेगा कि तुम कितने बेहोशी हो। पहले एक क्षण को होश को जगाकर देखना, झकझोर देना अपने को, जैसे तूफान आए और झाड़-झकझोर जाए, ऐसे अपने को झकझोर डालना, हिला डालना। एक क्षण को अपनी सारी शक्‍ति को उठाकर देखना-क्या है, कौन है, कहां है! ज्यादा देर की बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि एक क्षण से ज्यादा तुम न कर पाओगे। इसलिए एक क्षण काफी होगा। बस एक क्षण करके बाहर चले जाना, अपने काम में लग जाना दुकान है, बाजार है, घर है भूल जाना। जैसे तुम साधारण जीते हो, घंटेभर जी लेना। फिर घंटे भर बाद कमरे में जाकर फिर झकझोरकर अपने को देखना। तब तुम्हें तुलनात्मक रूप से पता चलेगा कि ये दो क्षण अगर होश के थे, तो बीच का घंटा क्या था! तब तुम तुलना कर पाओगे। मेरे कहने से तुम न समझोगे, क्योंकि हो होश को मैं समझा सकता हूं शब्‍दों में, लेकिन हो होश तो एक स्वाद है। मीठा, मीठा कहने से कुछ न होगा। वह तो तुम्हें मिठाई का पता है, इसलिए मैं मीठा कहता हूं तो तुम्हें अर्थ पता हो गया। मैं कहूं स्मृति, सुरति उससे कुछ न होगा, उसका तुम्हें पता ही नहीं है। तो तुम यह भी न समझ सकोगे कि स्मृतिभ्रंश क्या है। होश को जगाना क्षण भर को, फिर घंटे भर बेहोशी, फिर क्षण भर को होश को जगाकर देखना—तुम्हारे सामने तुलना आ जाएगी, तुम खारे और मीठे को पहचान लोगे। वह जो घंटा बीच में बीता, स्मृतिभ्रंश है। वह तुमने बेहोशी में बिताया—जैसे तुम थे ही नहीं, जैसे तुम चले एक यंत्र की भांति, जैसे तुम नशे में थे—और तब तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी बेहोशी मालूम पड़ेगी।


मन बेहोशी है, स्मृतिभ्रंश है। और स्वभावत : इन सबका जोड़ सर्वनाश है।

ओशो 

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