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Saturday, August 1, 2015

आध्यात्मिक साधना से कुछ उपलब्ध हो तो उसे छिपाए रखना

मुझे सूफी संत जुन्नैद का स्मरण आता है। एक दिन एक आदमी उसके पास आया और उसने कहा. ‘गुरुवर, मैं आपसे आपका गुप्त रहस्य जानने आया हूं। लोग कहते हैं कि आपके पास कोई स्वर्ण—रहस्य है और अब तक आपने उसे किसी को भी नहीं बताया है। आप मुझे वह बता दें; मैं उसके बदले में कुछ भी करने को राजी हूं।’
जुन्नैद ने कहा. ‘मैं इस रहस्य को तीस वर्षों से छिपाए हूं; तुम उसके लिए कितने समय तक इंतजार करने को तैयार हो? तुम्हें उसके लिए तैयारी करनी होगी। मैंने इस रहस्य को तीस वर्षों से छिपाए रखा है; लेकिन तुम्हें मैं बता दूंगा। लेकिन कितने समय तक तुम इसके लिए प्रतीक्षा कर सकते हो?’
वह आदमी डर गया, घबरा गया। उसने जुन्नैद से कहा कि आप ही बताएं कि मुझे कितने समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। जुन्नैद ने कहा कि कम से कम तीस वर्ष धीरज रखना होगा; ज्यादा समय नहीं कहता हूं। मैं बहुत की मांग नहीं कर रहा हूं।
उस आदमी ने कहा : ‘तीस वर्ष? मैं विचार करूंगा।’ जुन्नैद ने कहा कि तब तीस वर्षों के बाद भी मैं तुम्‍हें नहीं दूंगा। याद रहे, अभी तय करो तो ठीक, अन्‍यथा मुझे भी विचार करना पड़ेगा। और वह आदमी राजी हो गया।
कहते हैं कि वह आदमी कोई तीस वर्षों तक जुन्नैद के साथ रहा। तब अंतिम दिन आया और वह जुन्नैद के पास जाकर बोला कि अब अपना रहस्य मुझे बता दें। जुन्नैद ने कहा कि वह मैं तुम्हें इसी शर्त पर दे सकता हूं कि तुम उसे गुप्त रखो; किसी को बताओ नहीं। रहस्य को अपने साथ लिए मर जाना।
उस आदमी ने कहा. ‘तो आपने मेरी जिंदगी क्यों बर्बाद की? तीस साल मैंने इसीलिए तो इंतजार किया कि रहस्य मिलेगा तो उसे दूसरों को बताऊंगा, और अब आप यह शर्त लगाते हैं! तब जानने का क्या फायदा जब मैं उसे किसी को बता ही नहीं सकता? अगर यह शर्त है तो मुझे बताएं ही मत। यह तो तब मेरी समस्या बन जाएगी जो मेरा पीछा करेगी; कोई चीज जानते हुए भी मैं किसी को बता नहीं सकूंगा। उससे तो अच्छा है कि कहें ही मत। आपने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। अब तो थोड़े दिन बचे हैं, शांति से जीने दें। किसी चीज को जानते हुए औरों को न बताना मेरे लिए बड़ा कठिन होगा।’
इसलिए जब किसी आध्यात्मिक साधना से कुछ उपलब्ध हो तो उसे छिपाए रखना। उसका प्रचार मत करो; उसका उपयोग मत करो। उसे अछूता, शुद्ध रहने दो। तभी वह आंतरिक रूपांतरण के काम आएगा। अगर उसका बाहरी उपयोग करोगे तो वह व्यर्थ चला जाएगा।

ओशो 

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