मैं याद करता हूं एक पहाड़ी पर एक साधु खड़ा था। अभी सुबह ही थी और सूरज
की किरणों का जाल फैलना शुरू ही हुआ था। कुछ मित्र घूमने निकले थे।
उन्होंने एकांत में खड़े उस साधु को देखा। उन्होंने आपस में सोचा, वह वहां
क्या करता होगा? किसी ने कहा, ‘कभी कभी उसकी गाय वन में खो जाती है, शायद
वह ऊंचाई पर खड़ा होकर उसे ही खोजता है।’
पर दूसरे मित्र सहमत न हुए। एक ने कहा ‘उसे देख ऐसा नहीं लगता कि वह कुछ खोजता है। उसे देख लगता है कि वह किसी की प्रतीक्षा में है। कोई मित्र साथ आया होगा और वह पीछे छूट गया है, वह उसी की प्रतीक्षा कर रहा है।’
पर दूसरे इससे भी सहमत न हुए। तीसरे ने कहा: ‘न वह कुछ खोज रहा है, न प्रतीक्षा कर रहा है। वह प्रभु के चिंतन में लीन है।’ उनमें सहमति न हो सकी।
वे निर्णय के लिए साधु के पास गए।
प्रथम ने साधु से पूछा ‘क्या आप अपनी गाय खोज रहे हैं?’
उस निर्जन में खड़े व्यक्ति ने कहा ‘नहीं।’
दूसरे ने पूछा ‘क्या आप किसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं?’
उस एकाकी खड़े व्यक्ति ने कहा ‘नहीं।’
तीसरे ने पूछा ‘ क्या आप प्रभु का चिंतन कर रहे हैं?’
वह फिर भी बोला ‘ नहीं।’
वे तीनों हैरान हुए। उन्होंने सम्मिलित ही पूछा ‘फिर आप क्या कर रहे हैं?’
वह साधु बोला ‘कर कुछ भी नहीं रहा हूं। मैं केवल खड़ा ही हूं आई एम जस्ट स्टैंडिंग, मैं बस हूं ही, आई एम जस्ट एञ्जिस्टिंग।’
ऐसे ही बस होना है। कुछ भी नहीं करना है। सब छोड़ देना है और रह जाना है। फिर कुछ होगा जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। वह अनुभूति ही, जो शब्दों में नहीं आती है, सत्य की, स्वयं की, परमात्मा की अनुभूति है।
साधना पथ
ओशो
पर दूसरे मित्र सहमत न हुए। एक ने कहा ‘उसे देख ऐसा नहीं लगता कि वह कुछ खोजता है। उसे देख लगता है कि वह किसी की प्रतीक्षा में है। कोई मित्र साथ आया होगा और वह पीछे छूट गया है, वह उसी की प्रतीक्षा कर रहा है।’
पर दूसरे इससे भी सहमत न हुए। तीसरे ने कहा: ‘न वह कुछ खोज रहा है, न प्रतीक्षा कर रहा है। वह प्रभु के चिंतन में लीन है।’ उनमें सहमति न हो सकी।
वे निर्णय के लिए साधु के पास गए।
प्रथम ने साधु से पूछा ‘क्या आप अपनी गाय खोज रहे हैं?’
उस निर्जन में खड़े व्यक्ति ने कहा ‘नहीं।’
दूसरे ने पूछा ‘क्या आप किसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं?’
उस एकाकी खड़े व्यक्ति ने कहा ‘नहीं।’
तीसरे ने पूछा ‘ क्या आप प्रभु का चिंतन कर रहे हैं?’
वह फिर भी बोला ‘ नहीं।’
वे तीनों हैरान हुए। उन्होंने सम्मिलित ही पूछा ‘फिर आप क्या कर रहे हैं?’
वह साधु बोला ‘कर कुछ भी नहीं रहा हूं। मैं केवल खड़ा ही हूं आई एम जस्ट स्टैंडिंग, मैं बस हूं ही, आई एम जस्ट एञ्जिस्टिंग।’
ऐसे ही बस होना है। कुछ भी नहीं करना है। सब छोड़ देना है और रह जाना है। फिर कुछ होगा जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। वह अनुभूति ही, जो शब्दों में नहीं आती है, सत्य की, स्वयं की, परमात्मा की अनुभूति है।
साधना पथ
ओशो
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