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Sunday, August 2, 2015

सत्य मुफ्त मिल जाए!

अर्थशास्त्र का एक सीधा—सा नियम है कि जिस बात की मांग होगी उसकी द्यतइr होगी। मांगो भर, कोई न कोई उसे उत्पादन करने के लिए तत्पर हो जाएगा। हर तरह की चीज के उत्पादन हो जाते हैं। बाजार में मांग होनी चाहिए, फिर उत्पादक मिल जाता है।

मनुष्य की सबसे बड़ी मांग यह है कि हमें कुछ करना न पड़े, परमात्मा मुफ्त हो। मोक्ष बस कुछ न किए मिल जाए। इंच भर सरकना न पड़े। एक कदम उठाना न पड़े जीवन के कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलना न पड़े, और सत्य मिल जाए। सत्य मुफ्त मिल जाए। जब तुम कहते हो, सत्य मुफ्त मिल जाए, तो सत्य मुफ्त देनेवाले लोग तुम्हें मिल जाते हैं। पंडित और पुजारी तुम्हें धोखा दे पाए हैं तुम्हारे ही कारण। नहीं तो कौन तुम्हें धोखा दे पाएगा। तुम आंख बंद किए प्रकाश देखना चाहते हो, दिखानेवाले मिल जाते हैं। फिर तुम जो देखते हो वह सिर्फ सपना है। वह सिर्फ तुम्हारी कल्पना है। तुमने जो परमात्मा देखा है, तुमने जो आत्मा देखी है बस कल्पना का जाल है। यथार्थ को देखने के लिए तो सारे अंधविश्वासों की परिधिया तोडनी पड़ेगी, सारे विश्वास छोड़ देने पड़ेंगे। और अथक श्रम करना होगा, ताकि तुम्हारे भीतर पड़ी हुई चेतना सजग हो। का सोवै दिन—रैन, विरहिनी जाग रे, खूब सो लिए बहुत सो लिए। जागने में श्रम तो होगा ही। क्योंकि नींद की आदतें पुरानी हैं, लंबी हैं, अति प्राचीन हैं।

नींद ही तुम्हारा अतीत है जन्मों जन्मों का अतीत। तो नींद बड़ी वजनी है, और जागरण की किरण तो बड़ी छोटी होगी। नींद तो तूफान की तरह है, और जागरण तो छोटे से दीए की तरह होगा। अगर तुमने सहारा नहीं दिया जागरण को, तो दीया बुझ जाएगा, कभी भी बुझ जाएगा, जल भी न पाएगा। और आदमी का अहंकार ऐसा है कि यह मानने का मन नहीं होता कि मेरा दीया जला नहीं है। इसलिए तुम्हें धोखा देनेवाले लोग मिल जाते हैं, जो तुमसे कहते हैं.: तुम्हारा दीया जला ही हुआ है। तुम्हें कुछ करना नहीं है। तुम्हें कहीं जाना नहीं है। तुम्हें कुछ होना नहीं है। तुम तो बस इस जीवन दृष्टि को पकड़ लो, इस शास्त्र को पकड़ लो, इस सिद्धांत को पकड़ लो शेष सब हो जाएगा।

तुम करना नहीं चाहते, इसलिए तुम बदले नहीं। कल भी तुम बंधे थे, आज भी तुम बंधे हो, कल भी तुम बंधे होओगे। सत्य की कीमत चुकानी ही पड़ती है। इस जगत् में कुछ भी मुफ्त नहीं है।
ओशो

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