छोड़े तुलना! किसी से मत तौलें अपने को। कोई अर्थ भी नहीं है, कोई उपाय भी नहीं है। राजी हो जाएं, जैसे हैं। और एक ही बात की फिक्र लें कि जो मैं हूं जैसा हूं वह पूरा का पूरा मेरे सामने कैसे प्रकट हो जाए। यहां हम इसी बात की खोज करेंगे। न तो मैं आपको बनाना चाहता हूं बुद्ध, न राम, न कृष्ण। कोई जरूरत नहीं है, वे हो चुके। मैं आपको बनाना चाहता हूं वही, जो आप हो सकते हैं। जो बीज आपमें है, वही अंकुरित हो। दूसरे से भी आपको आगे पीछे नहीं रखना चाहता। कोई किसी से आगे पीछे नहीं है। हर एक आदमी अपनी जगह है। आप अपनी ही जगह पर खिल सकें, जो भी सुगंध छिपाई है आपने अपने हृदय में, वह बाहर आ सके। मैं आपको आप ही बनाना चाहता हूं।
कल सुबह हम ध्यान करेंगे। दस—दस मिनिट के चार चरण होंगे। पहले चरण में श्वास—जितनी तीव्र हो सके, लोहार की धौंकनी की भांति, श्वास ही श्वास रह जाए। दूसरे दस मिनिट के चरण में भावों का रेचन। जो भी भीतर दबा पड़ा है—रुदन, आंसू चीख, चिल्लाहट, क्रोध, हिंसा—सबको बाहर फेंक देना। और विचार ही नहीं करना, शरीर के द्वारा बाहर फेंक देना। शरीर जो करना चाहे, उस क्षण में उसे करने देना, ताकि सब भार गिर जाए। तीसरे चरण में ‘हूं मंत्र का प्रयोग—इतने जोर से कि आकाश गूंजने लगे। बाहर फेंकना है, ‘हूं’ की चोट और हुंकार। इस हुंकार का परिणाम होता है कुंडलिनी पर हथौड़े की तरह। भीतर कुंडलिनी पर चोट पड़ती है, और कुंडलिनी की शक्ति ऊपर उठनी शुरू हो जाती है। यह अनुभव प्रकट होगा। जैसे ही चोट पडनी शुरू होगी, आपको लगेगा कि भीतर शक्ति के तेज तूफान ऊपर की तरफ उठने शुरू हो गए। और उनके उठते ही आप दूसरे जगत में प्रवेश करने लगते हैं।
चौथे चरण में दस मिनिट का होगा मौन—पूर्ण मौन, जिसमें परम—सत्ता से मिलन होगा।
साधना सूत्र
ओशो
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