मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि फलां साधु के पास जाते हैं, तो
हाथ में ताबीज प्रकट हो जाता है, भस्म प्रकट हो जाती है। ये मदारी से
प्रभावित हो कर लौटे हैं, अध्यात्म से प्रभावित हो कर नहीं लौटे हैं। यह जो
शक्ति है, यह जो ताबीज या भस्में प्रकट कर रहा है, उसकी भी जो गहरे में
आकांक्षा है, वह अध्यात्म नहीं है। जो प्रभावित हो रहा है, उसका भी जो
प्रभावित होने में जो कारण है, वह अध्यात्म नहीं है। वे सब शक्ति के
प्रदर्शन से प्रभावित हो रहे हैं। कि किसी साधु के छूने से कोई बीमार ठीक
हो जाता है, तो भी हम जो प्रभावित हो रहे हैं, वह अध्यात्म नहीं है। वह कुछ
और है। बाहर की भाषा हमारी समझ में आती है।
लेकिन हम बुद्ध जैसे व्यक्ति को न पहचान पाएंगे। न तो उनके छूने से कोई बीमार ठीक हो रहा है, न वह किसी बीमार को ठीक कर रहे हैं छू कर। और कभी अगर ऐसा हो भी जाता है, तो भी बुद्ध यह नहीं कहते कि ऐसा मैंने किया है। वे यही कहते हैं कि संयोग की होगी बात, तुम्हारे कर्मफल ऐसे होंगे कि यह बात होने के करीब होगी। वे यह नहीं कहते, मैंने किया है। वे यही कहते हैं, ऐसा हो गया है, इस पर ज्यादा ध्यान मत दो। न धन है, न पद है, न चमत्कार है, तो बुद्ध को आप पहचानेंगे कैसे? आपके पहचानने के सारे रास्ते ही समाप्त हो गए।
मैं एक यात्रा में था। मेरे कंपार्टमेंट में एक सज्जन और थे। हम दोनों ही थे। स्वभावत: उन्हें चुप रहना मुश्किल हो गया, कुछ बात चलानी चाही। लेकिन मैंने हां-ना में उत्तर दिए, तो बात ज्यादा चली नहीं। तो फिर उन्होंने पान निकाला कि आप पान लें, मैंने कहा कि पान मैं खाता नहीं। तो फिर उन्होंने सिगरेट निकाली कि आप सिगरेट लें, मैंने कहा कि सिगरेट मैं पीता नहीं। तो उन्होंने कहा, यह बताइए कि आपसे मैत्री बनाने का कोई उपाय है या नहीं। क्योंकि अगर मैं पान लेता तो मैत्री बनती, सिगरेट लेता तो मैत्री बनती। मैंने उनसे पूछा कि पान और सिगरेट के अतिरिक्त आपको मैत्री बनाने का कोई और उपाय पता है या नहीं? उनकी भाषा खतम हो गई थी। वे जो उपाय कर सकते थे, वह समाप्त हो गया, तो लगा कि अब कोई संबंध निर्मित नहीं हो सकता।
बुद्ध से आप कैसे संबंध निर्मित करेंगे? क्योंकि शक्ति की सारी भाषा व्यर्थ है। अगर आप शून्य को भी शक्ति मानते हों! जानते हों कि किसी का शून्यवत हो जाना इस जगत में सबसे बड़ा चमत्कार है। ना-कुछ हो जाना इस जगत में सबसे बड़ी घटना है। क्योंकि क्षुद्रतम आदमी भी मानता है कि मैं कुछ हूं। क्षुद्रतम आदमी भी मानता है कि मैं कुछ हूं तो इस जगत में मैं कुछ हूं यह मानना तो सामान्य बात है। लेकिन यह अनुभव कर लेना कि मैं ना-कुछ हूं शून्यवत हूं बड़े से बड़ा चमत्कार है।
लेकिन हम बुद्ध जैसे व्यक्ति को न पहचान पाएंगे। न तो उनके छूने से कोई बीमार ठीक हो रहा है, न वह किसी बीमार को ठीक कर रहे हैं छू कर। और कभी अगर ऐसा हो भी जाता है, तो भी बुद्ध यह नहीं कहते कि ऐसा मैंने किया है। वे यही कहते हैं कि संयोग की होगी बात, तुम्हारे कर्मफल ऐसे होंगे कि यह बात होने के करीब होगी। वे यह नहीं कहते, मैंने किया है। वे यही कहते हैं, ऐसा हो गया है, इस पर ज्यादा ध्यान मत दो। न धन है, न पद है, न चमत्कार है, तो बुद्ध को आप पहचानेंगे कैसे? आपके पहचानने के सारे रास्ते ही समाप्त हो गए।
मैं एक यात्रा में था। मेरे कंपार्टमेंट में एक सज्जन और थे। हम दोनों ही थे। स्वभावत: उन्हें चुप रहना मुश्किल हो गया, कुछ बात चलानी चाही। लेकिन मैंने हां-ना में उत्तर दिए, तो बात ज्यादा चली नहीं। तो फिर उन्होंने पान निकाला कि आप पान लें, मैंने कहा कि पान मैं खाता नहीं। तो फिर उन्होंने सिगरेट निकाली कि आप सिगरेट लें, मैंने कहा कि सिगरेट मैं पीता नहीं। तो उन्होंने कहा, यह बताइए कि आपसे मैत्री बनाने का कोई उपाय है या नहीं। क्योंकि अगर मैं पान लेता तो मैत्री बनती, सिगरेट लेता तो मैत्री बनती। मैंने उनसे पूछा कि पान और सिगरेट के अतिरिक्त आपको मैत्री बनाने का कोई और उपाय पता है या नहीं? उनकी भाषा खतम हो गई थी। वे जो उपाय कर सकते थे, वह समाप्त हो गया, तो लगा कि अब कोई संबंध निर्मित नहीं हो सकता।
बुद्ध से आप कैसे संबंध निर्मित करेंगे? क्योंकि शक्ति की सारी भाषा व्यर्थ है। अगर आप शून्य को भी शक्ति मानते हों! जानते हों कि किसी का शून्यवत हो जाना इस जगत में सबसे बड़ा चमत्कार है। ना-कुछ हो जाना इस जगत में सबसे बड़ी घटना है। क्योंकि क्षुद्रतम आदमी भी मानता है कि मैं कुछ हूं। क्षुद्रतम आदमी भी मानता है कि मैं कुछ हूं तो इस जगत में मैं कुछ हूं यह मानना तो सामान्य बात है। लेकिन यह अनुभव कर लेना कि मैं ना-कुछ हूं शून्यवत हूं बड़े से बड़ा चमत्कार है।
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