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Tuesday, August 11, 2015

प्रेम का दीया


बुद्ध एक सुबह बैठे हैं और एक आदमी आ गया है। वह बहुत क्रोध में है। उसने बुद्ध को बहुत गालियां दी हैं और फिर इतने क्रोध से भर गया है कि उसने बुद्ध के मुंह के ऊपर थूक दिया है! बुद्ध ने अपने चादर से वह थूक पोंछ लिया और उससे कहा, मित्र, कुछ और कहना है? भिक्षु आनंद बुद्ध के पास बैठा है। वह क्रोध से भर गया है। और बुद्ध की यह बात सुनकर कि वे कहते हैं कि कुछ और कहना है, वह और हैरान हो गया है। और उसने कहा, "आप क्या कहते हैं? यह आदमी थूक रहा है और आप पूछते हैं, कुछ और कहना है!'

बुद्ध ने कहा, "मैं समझ रहा हूं, शायद क्रोध इतना भारी हो गया है कि शब्द कहने में असमर्थ मालूम होते होंगे, इसलिए उसने थूककर कोई बात कही है। मैं समझ गया हूं, उसने कुछ कहा है। अब मैं पूछता हूं, और कुछ कहना है?

वह आदमी उठ गया है, लौट गया है। पछताया है, रात भर सो नहीं सका है। दूसरे दिन सुबह क्षमा मांगने आया है। बुद्ध के चरणों में उसने सिर रख दिया। सिर उठाया, बुद्ध ने कहा, और कुछ कहना है?  वह आदमी कहने लगा, कल भी आप यही कहते थे! बुद्ध ने कहा, आज भी वही कहता हूं। शायद कुछ कहना चाहते हो। शब्द कहने में असमर्थ थे, इसलिए सिर पैरों पर रखकर कह दिया है। कल थूक कर कहा था। पूछता हूं, कुछ और कहना है?
वह आदमी बोला, कुछ और नहीं, क्षमा मांगने आया हूं। रात भर सो नहीं सका। मन में यह ख्याल हुआ, आज तक आपका प्रेम मिला मुझे, आज थूक आया हूं आपके ऊपर, अब शायद वह प्रेम मुझे नहीं मिल सकेगा।

बुद्ध खूब हंसने लगे और उन्होंने कहा, सुनते हो आनंद, यह आदमी कैसी पागलपन की बातें कहता है! यह कहता है कि कल तक मुझे आपका प्रेम मिला और कल मैंने थूक दिया तो अब प्रेम नहीं मिलेगा! तो शायद यह सोचता है कि यह मेरे ऊपर नहीं थूकता था, इसलिए मैं इसे प्रेम करता था, जो थूकने से प्रेम बंद हो जायेगा! पागल है तू! मैं प्रेम इसलिए करता हूं कि मैं प्रेम ही कर सकता हूं और कुछ नहीं कर सकता हूं। तू थूके, तू गाली दे, तू पैरों पर सिर रखे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं प्रेम ही कर सकता हूं। मेरे भीतर प्रेम का दीया जल गया। अब मेरे पास से जो भी निकले, उस पर प्रेम पड़ेगा। कोई न निकले तो एकांत में प्रेम का दीया जलता रहेगा। अब इसका किसी से कोई संबंध न रहा। अब यह कोई संबंध न रहा, यह मेरा स्वभाव हो गया है।


ओशो 

 

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