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Thursday, October 1, 2015

ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास ( प्राण) को टिकाको। जब वह सोने के क्षण में हृदय तक पहुंचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।

सातवीं श्वास विधि:
ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास ( प्राण) को टिकाको। जब वह सोने के क्षण में हृदय तक पहुंचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।

तुम अधिकाधिक गहरी पर्तों में प्रवेश कर रहे हो।

‘ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास (प्राण) को टिकाओ।’

अगर तुम तीसरी आंख को जान गए हो तो तुम ललाट के मध्य में स्थित सूक्ष्म श्वास को, अदृश्य प्राण को जान गए, और तुम यह भी जान गए कि वह ऊर्जा, वह प्रकाश बरसता है।’जब वह सोने के क्षण में हृदय तक पहुंचेगा’ जब यह वर्षा तुम्हारे हृदय तक पहुंचेगी ’तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।’

इस विधि को तीन हिस्सों में लो। एक, श्वास के भीतर जो प्राण है, जो उसका सूक्ष्म, अदृश्य, अपार्थिव अंश है, उसे तुमको अनुभव करना होगा। यह तब होता है, जब तुम भृकुटियों के बीच अवधान को थिर रखते हो। तब यह आसानी से घटित होता है। अगर तुम अवधान को अंतराल में टिकाते हो, तो भी घटित होता है, मगर उतनी आसानी से नहीं। यदि तुम नाभिकेंद्र के प्रति सजग हो, जहां श्वास आती है और छूकर चली जाती है, तो भी यह घटित होता है, पर कम आसानी से। उस सूक्ष्म प्राण को जानने का सबसे सुगम मार्ग है, तीसरी आंख में थिर होना। वैसे तुम जहां भी केंद्रित होगे, यह घटित होगा। तुम प्राण को प्रभावित होते अनुभव करोगे।

यदि तुम प्राण को अपने भीतर प्रवाहित होता अनुभव कर सको तो तुम यह भी जान सकते हो कि कब तुम्हारी मृत्यु होगी। यदि तुम सूक्ष्म श्वास को, प्राण को महसूस करने लगे तो मरने के छह महीने पहले से तुम अपनी आसन्न मृत्यु को जानने लगते हो। कैसे इतने संत अपनी मृत्यु की तिथि बता देते हैं? यह आसान है। क्योंकि यदि तुम प्राण के प्रवाह को जानते हो तो जब उसकी गति उलट जाएगी तब उसको भी तुम जान लोगे। मृत्यु के छह महीने पहले प्रक्रिया उलट जाती है। प्राण तुम्हारे बाहर जाने लगता है। तब श्वास इसे भीतर नहीं ले जाती, बल्कि उलटे बाहर ले जाने लगती है वही श्वास!

तुम इसे नहीं जान पाते हो, क्योंकि तुम उसके अदृश्य भाग को नहीं देखते, केवल वाहन को ही देखते हो। और वाहन तो एक ही रहेगा! अभी श्वास प्राण को भीतर ले जाती है और वहां छोड़ देती है। फिर वाहन बाहर खाली वापस जाता है। और प्राण से पुन: भरकर भीतर जाता है। इसलिए याद रखो कि भीतर आने वाली श्वास और बाहर जाने वाली श्वास, दोनों एक नहीं हैं। वाहन के रूप में तो पूरक श्वास और रेचक श्वास एक ही हैं, लेकिन जहां पूरक प्राण से भरा होता है, वहीं रेचक उससे रिक्त रहता है। तुमने प्राण को पी लिया और श्वास खाली हो गई।

जब तुम मृत्यु के करीब होते हो, तब उलटी प्रक्रिया चालू होती है। भीतर आने वाली श्वास प्राणविहीन आती है, रिक्त आती है, क्योंकि तुम्हारा शरीर अस्तित्व से प्राण को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाता है। तुम मरने वाले हो, तुम्हारी जरूरत न रही। पूरी प्रक्रिया उलट जाती है। अब जब श्वास बाहर जाती है, तब प्राण को साथ लिए बाहर जाती है।

इसलिए जिसने सूक्ष्म प्राण को जान लिया वह अपनी मृत्यु का दिन भी तुरंत जान सकता है। छह महीने पहले प्रक्रिया उलटी हो जाती है। 

यह सूत्र बहुत बहुत महत्वपूर्ण है।

‘ललाट के मध्य में सूक्ष्म श्वास (प्राण) को टिकाओ। जब सोने के क्षण में वह हृदय तक पहुंचेगा तब स्वप्न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।’

जब तुम नींद में उतर रहे हो तभी इस विधि को साधना है, अन्य समय में नहीं। ठीक सोने का समय इस विधि के अभ्यास के लिए उपयुक्त समय है।

तुम नींद में उतर रहे हो, धीरे धीरे नींद तुम पर हावी हो रही है। कुछ ही क्षणों के भीतर तुम्हारी चेतना लुप्त होगी, तुम अचेत हो जाओगे। उस क्षण के आने के पहले तुम अपनी श्वास और उसके सूक्ष्म अंश प्राण के प्रति सजग हो जाओ और उसे हृदय तक जाते हुए अनुभव करो। अनुभव करते जाओ कि यह हृदय तक आ रहा है, हृदय तक आ रहा है। प्राण हृदय से होकर तुम्हारे शरीर में प्रवेश करता है, इसलिए यह अनुभव करते ही जाओ कि प्राण हृदय तक आ रहा है। और इस निरंतर अनुभव के बीच ही नींद को आने दो। तुम अनुभव करते जाओ और नींद को आने दो, नींद को तुमको अपने में समेट लेने दो।

यदि यह संभव हो जाए कि तुम अदृश्य प्राण को हृदय तक जाते देखो और नींद को भी, तो तुम अपने सपनों के प्रति भी सजग हो जाओगे। तब तुमको बोध रहेगा कि तुम स्‍वप्‍न देख रहे हो। आमतौर से हम नहीं जानते हैं कि हम स्वप्न देख रहे हैं। जब तुम सपना देखते हो तो तुम समझते हो कि यह यथार्थ ही है। वह भी तीसरी आंख के कारण ही संभव होता है। क्या तुमने किसी को नींद में देखा है? उसकी आंखें ऊपर चली जाती हैं और तीसरी आंख में स्थिर हो जाती हैं। यदि नहीं देखा है तो देखो।

तुम्हारा बच्चा सोया है, उसकी आंखें खोलकर देखो कि उसकी आंखें कहां हैं। उसकी आंख की पुतलियां ऊपर को चढ़ी हैं और त्रिनेत्र पर केंद्रित हैं। मैं कहता हूं कि बच्चों को देखो, सयानों को नहीं। सयाने भरोसे योग्य नहीं हैं, क्योंकि उनकी नींद गहरी नहीं होती। वे सोचते भर हैं कि सोए हैं। बच्चों को देखो। उनकी आंखें ऊपर को चढ़ जाती हैं।

इसी तीसरी आंख में थिरता के कारण तुम अपने सपनों को सच मानते हो। तुम यह नहीं समझ सकते कि वे सपने हैं। वह तुम तब जानोगे, जब सुबह जागोगे। तब तुम जानोगे कि मैं स्‍वप्‍न देख रहा था। लेकिन वह तो बाद का खयाल है। स्‍वप्‍न में तुम नहीं समझ सकते कि यह स्वप्न है। यदि समझ जाओ तो दो तल हो गए स्वप्न है और तुम सजग हो जागरूक हो। जो नींद में स्‍वप्‍न के प्रति जाग सके, उसके लिए यह सूत्र चमत्कारिक है।

यह सूत्र कहता है ‘स्वप्न पर और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।’

यदि तुम स्वप्न के प्रति जागरूक हो जाओ तो तुम दो काम कर सकते हो। एक कि तुम स्वप्न पैदा कर सकते हो। आमतौर से तुम स्वप्न नहीं पैदा कर सकते। आदमी कितना नपुंसक है! तुम स्‍वप्‍न भी नहीं पैदा कर सकते। अगर तुम कोई खास स्‍वप्‍न देखना चाहो तो नहीं देख सकते; यह तुम्‍हारे हाथ नहीं है। मनुष्य कितना शक्‍ति हीन है। स्‍वप्‍न भी उससे नहीं निर्मित किए जा सकते। तुम स्वप्‍नों के शिकार भर हो, उनके स्रष्टा नहीं। स्वप्न तुम में घटित होता है, तुम कुछ नहीं कर सकते हो। न तुम उसे रोक सकते हो, न उसे पैदा कर सकते हो।

लेकिन अगर तुम यह देखते हुए नींद में उतरी कि हृदय प्राण से भर रहा है, निरंतर हर श्वास में प्राण से स्पर्शित हो रहा है तो तुम अपने स्वप्‍नों के मालिक हो जाओगे। और यह मालकियत बहुत अनूठी है, दुर्लभ है। तब तुम जो भी स्वप्न देखना चाहो, देख सकते हो। ठीक सोने के समय भाव करो कि मैं यह स्‍वप्‍न देखना चाहता हूं और तुम वह स्वप्न देख लोगे। और सोते समय कहो कि मैं फलां स्‍वप्‍न नहीं देखना चाहता और वह स्वप्न कभी तुम्हारे मन में प्रवेश नहीं कर सकेगा।

लेकिन अपने स्वप्‍नों के मालिक बनने का क्या प्रयोजन है? क्या यह व्यर्थ नहीं है? नहीं, यह व्यर्थ नहीं है। एक बार तुम स्वप्नों के मालिक हो गए तो दुबारा तुम कभी स्वप्न नहीं देखोगे। वह व्यर्थ हो गया। जरूरत नहीं रही। जैसे ही तुम अपने स्‍वप्‍नों के मालिक हो जाते हो, स्‍वप्‍न बंद हो जाते हैं, उनकी जरूरत नहीं रह जाती है। और जब स्‍वप्‍न बंद होते हैं, तब तुम्हारी नींद का गुणधर्म ही और होता है। वह गुणधर्म वही है, जो मृत्यु का है।
मृत्यु गहन नींद है। अगर तुम्हारी नींद मृत्यु की तरह गहरी हो जाए तो उसका अर्थ है कि सपने विदा हो गए। सपने नींद को उथली बना देते हैं। सपनों के चलते तुम सतह पर ही घूमते रहते हो। सपनों में उलझे रहने के कारण तुम्हारी नींद उथली हो जाती है। और जब सपने नहीं रहते, तब तुम नींद के सागर में उतर जाते हो, उसकी गहराई छू लेते हो। वही मृत्यु है।

इसलिए भारत ने सदा कहां है कि नींद छोटी मृत्यु है, और मृत्यु लंबी नींद है। गुणात्मक रूप से दोनों समान हैं। नींद दिनदिन की मृत्यु है, मृत्यु जीवन जीवन की नींद है। प्रतिदिन तुम थक जाते हो, तुम सो जाते हो। और दूसरी सुबह तुम फिर अपनी शक्ति और अपनी जीवंतता को वापस पा लेते हो। तुम मानो फिर से जन्म लेते हो। वैसे ही सत्तर या अस्सी वर्ष के जीवन के बाद तुम पूरी तरह थक जाते हो। अब छोटी अवधि की मृत्यु से काम नहीं चलेगा, अब तुमको बड़ी मृत्यु की जरूरत है। उस बड़ी मृत्यु या बड़ी नींद के बाद तुम बिलकुल नए शरीर के साथ पुनर्जन्म लेते हो।

और एक बार यदि तुम स्वप्नशून्य नींद को जान जाओ और उसमें बोधपूर्वक रहो तो फिर मृत्यु का भय जाता रहेगा। कोई कभी नहीं मर सकता, मृत्यु असंभव है। अभी एक दिन पहले मैं कहता था कि केवल मृत्यु निश्चित है, और अब कहता हूं कि मृत्यु असंभव है। कोई कभी नहीं मरा है। कोई कभी मर नहीं सकता। संसार में यदि कुछ असंभव है तो वह मृत्यु है। क्योंकि अस्तित्व जीवन है। तुम फिर फिर जन्मते हो, लेकिन नींद ऐसी गहरी है कि पुरानी पहचान भूल जाते हो। तुम्हारे मन से स्मृतियां पोंछ दी जाती हैं।

इसे इस तरह सोचो। मान लो कि आज तुम सोने जा रहे हो। और कोई ऐसा यंत्र बन गया है: शीघ्र ही बनने वाला है जो कि जैसे टेपरेकार्डर के फीते से आवाज पोंछ दी जाती है, वैसे ही मन से स्मृति को पोंछ डालता है। क्योंकि स्मृति भी एक गहरी रेकार्डिंग है। देरअबेर हम ऐसा यंत्र निकाल लेंगे जो तुम्हारे सिर में लगा दिया जाएगा और जो तुम्हारे दिमाग को पोंछकर बिलकुल साफ कर देगा। तो कल सुबह तुम वही आदमी नहीं रहोगे जो सोने गया था। क्योंकि तुमको याद नहीं रहेगा कि कौन सोने गया था। तब तुम्हारी नींद मृत्यु जैसी हो जाएगी। एक गैप आ जाएगा। तुमको याद नहीं रहेगा कि कौन सोया था। यहां यहीं चीज स्वाभाविक ढंग से घट रही है। जब तुम मरते हो और फिर जन्म लेते हो तब तुमको याद नहीं रहता कि छ मरा। तुम फिर से शुरू करते हो।

इस विधि के द्वारा पहले तो तुम स्‍वप्‍नों के मालिक हो जाओगे। उसका अर्थ हुआ कि सपने आना बंद हो जाएंगे। या यदि तुम खुद सपने देखना चाहोगे तो सपना देख भी सकते हो। लेकिन तब वह ऐच्छिक सपना होगा। वह अनिवार्य नहीं रहेगा, वह तुम पर लादा नहीं जाएगा, तुम उसके शिकार नहीं होगे। और तब तुम्हारी नींद का गुणधर्म ठीक मृत्यु जैसा हो जाएगा। तब तुम जानोगे कि मृत्यु भी नींद है।

इसलिए यह सूत्र कहता है. ‘स्‍वप्‍न और स्वयं मृत्यु पर अधिकार हो जाएगा।’

तब तुम जानोगे कि मृत्यु एक लंबी नींद है और सहयोगी है, और सुंदर है। क्योंकि वह तुमको नवजीवन देती है, वह तुमको सब कुछ नया देती है। फिर तो मृत्यु भी समाप्त हो जाती है; स्वप्न के शेष होते ही मृत्यु समाप्त हो जाती है।

मृत्यु पर नियंत्रण पाने, अधिकार पाने का दूसरा अर्थ भी है। अगर तुम समझ लो कि मृत्यु नींद है तो तुम उसको दिशा दे सकते हो। अगर तुम अपने सपनों को दिशा दे सकते हो तो मृत्यु को भी दे सकते हो। तब तुम चुनाव कर सकते हो कि कहां पैदा हों, कब पैदा हों, किससे पैदा हों और किस रूप में पैदा हों। तब तुम अपने जन्म के भी मालिक हो गए।

बुद्ध की मृत्यु हुई। मैं उनके अंतिम जन्म के पूर्व के जन्म की चर्चा कर रहा हूं, जब वे बुद्ध नहीं हुए थे। मरने के पूर्व उन्होंने कहां ‘मैं अमुक मां बाप से पैदा होऊंगा; ऐसी मेरी मा होगी, ऐसे मेरे पिता होंगे, और मेरी मां मेरे जन्म के बाद ही मर जाएगी। और जब मैं जनूंगा, मेरी मां ऐसे ऐसे सपने देखेगी।’ न सिर्फ तुमको अपने स्‍वप्‍नों पर अधिकार होता है, दूसरे के स्‍वप्‍न पर भी अधिकार हो जाता है। सो बुद्ध ने उदाहरण के तौर पर बताया कि जब मैं मा के पेट में होऊंगा, तब मेरी मां ये ये स्‍वप्‍न देखेगी। और जब कोई इस क्रम से इन स्वप्नों को देखे, तब समझना कि मैं जन्म लेने वाला हूं।

और ऐसा हुआ। बुद्ध की माता ने उसी क्रम से सपने देखे। वह क्रम सारे भारत को पता था, विशेषकर उनको जो धर्म में, जीवन की गहन चीजों में और उसके गुह्य पथों में उत्सुक थे। पता था, इसलिए उन स्‍वप्‍नों की व्याख्या हुई। स्‍वप्‍नों की व्याख्या करने वाला पहला आदमी फ्रायड नहीं था, और न उसकी व्याख्या में गहराई थी। पहला वह केवल पश्चिम के लिए था।

तो बुद्ध के पिता ने स्‍वप्‍नों के व्याख्याकारों को, उस जमाने के फ्रायडों और जुगों को तुरंत बुलवाया और उनसे पूछा, इस क्रम का क्या अर्थ है? मुझे डर लगता है, ये सपने अदभुत हैं और एक ही कम से आ रहे हैं। एक ही तरह के सपने क्रम से, बारी बारी से आ रहे हैं। मानो कोई एक ही फिल्म को बार बार देखता हो। क्या हो रहा है?

और व्याख्याकारों ने बताया कि आप एक महान आत्मा के पिता होने जा रहे हैं, वह बुद्ध होने वाला है। लेकिन आपकी पत्नी को संकट है, क्योंकि जब ऐसे बुद्ध जन्म लेते है, तब मां का जीना कठिन हो जाता है। बुद्ध के पिता ने कारण पूछा। व्याख्याकारों ने कहां कि हम यह नहीं बता सकते, लेकिन जो आत्मा पैदा होने वाली है, उसका ही वक्तव्य है कि उसके जन्म लेने पर उसकी मां की मृत्यु होगी।

बाद में बुद्ध से पूछा गया कि आपकी माता की मृत्यु तुरंत क्यों हुई? उन्होंने कहां कि एक बुद्ध को जन्म देना इतनी बड़ी घटना है कि उसके बाद और सब कुछ व्यर्थ हो जाता है। इसलिए मा जीवित नहीं रह सकती। उसे नया जीवन शुरू करने के लिए फिर से जन्म लेना होगा। एक बुद्ध को जन्म देना ऐसा परम अनुभव है, ऐसा शिखर है कि मां उसके बाद नहीं बची रह सकती। इसलिए मां की मृत्यु हुई।

बुद्ध ने अपने पिछले जीवन में कहां था कि मैं उस समय जन्म लूंगा, जब मेरी मां एक तालवृक्ष के नीचे खडी होगी। और वही हुआ। बुद्ध का जब जन्म हुआ, तब उनकी मां तालवृक्ष के नीचे खड़ी थीं। और बुद्ध ने यह भी कहां था, जब मेरी मां तालवृक्ष के नीचे खड़ी होगी, तब मैं जन्म लूंगा और तुरंत मैं सात कदम चलूंगा। यह यह पहचान होगी, जो बताए देता हूं ताकि तुम जान सको कि बुद्ध का जन्म हुआ है। और बुद्ध ने सब कुछ का इंगित दिया था।

और यह केवल बुद्ध के लिए ही सही नहीं है। यही जीसस के लिए सही है, यही महावीर के लिए सही है, यही और भी कई अन्यों के लिए सही है। प्रत्येक जैन तीर्थंकर ने अपने पिछले जन्म में भविष्यवाणी की थी कि उनका जन्म किस तरह होगा। उन्होंने भी स्वप्नों के क्रम बताए थे, उन्होंने भी प्रतीक बताए थे, और कहां था कि किस तरह सब कुछ घटित होने वाला है।

तुम दिशा दे सकते हो। एक बार तुम अपने स्वप्नों को दिशा देने लगो तो सब कुछ को दिशा दे सकते हो। क्योंकि यह संसार स्‍वप्‍नों का ही बना हुआ है। और स्‍वप्‍नों का ही यह जीवन बना है। इसलिए जब तुम्हारा अधिकार सपने पर हुआ तब सब कुछ पर हो गया।

यह सूत्र कहता है. ‘स्वयं मृत्यु पर।’

तब कोई व्यक्ति अपने को एक विशेष तरह का जन्म भी दे सकता है, विशेष तरह का जीवन भी दे सकता है।
हम लोग तो शिकार हैं। हम नहीं जानते हैं कि क्यों जन्मते हैं और क्यों मरते हैं। कौन हमें चलाता है और क्यों? कोई कारण नहीं दिखाई देता है। सब कुछ अराजकता, संयोग जैसा है। ऐसा इसलिए है कि हम मालिक नहीं हैं। एक बार मालिक हो जाएं तो फिर ऐसा नहीं रहेगा।

तंत्र सूत्र 

ओशो 

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