चौथी श्वास विधि
या जब श्वास पूरी तरह बाहर गई है और स्वत: ठहरी है या पूरी
तरह भीतर आई है और ठहरी है— ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्यक्ति का
क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवलअशुद्ध के लिए यह कठिन है।
लेकिन तब तो यह विधि सब के लिए कठिन है, क्योंकि शिव कहते हैं कि ‘केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है.।’
लेकिन कौन शुद्ध है? तुम्हारे लिए यह कठिन है, तुम इसका अभ्यास नहीं कर
सकते। लेकिन कभी अचानक इसका अनुभव तुम्हें हो सकता है। तुम कार चला रहे हो
और अचानक तुम्हें लगता है कि दुर्घटना होने जा रही है। श्वास बंद हो जाएगी।
अगर वह बाहर है तो बाहर ही रह जाएगी, भीतर है तो भीतर ही रह जाएगी। ऐसे
संकटकाल में तुम श्वास नहीं ले सकते; तुम्हारे बस में नहीं है। सब कुछ ठहर
जाता है, विदा हो जाता है।
‘या जब श्वास पूरी तरह बाहर गई है और स्वत: ठहरी है, या पूरी तरह भीतर
आई है और ठहरी है—ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्यक्ति का क्षुद्र अहंकार
विसर्जित हो जाता है।’ तुम्हारा क्षुद्र अहंकार दैनिक उपयोगिता की चीज है।
संकट की घड़ी में तुम उसे नहीं याद रख सकते। तुम जो भी हो, नाम, बैंक
बैलेंस, प्रतिष्ठा, सब काफूर हो जाता है। तुम्हारी कार दूसरी कार से टकराने
जा रही है; एक क्षण, और मृत्यु हो जाएगी। इस क्षण में एक विराम होगा,
अशुद्ध के लिए भी विराम होगा। ऐसे क्षण में अचानक श्वास बंद हो जाती है। और
उस क्षण में अगर तुम बोधपूर्ण हो सके तो तुम उपलब्ध हो जाओगे।
जापान में झेन संतों ने इस विधि का बहुत उपयोग किया है। इसीलिए उनके
उपाय अनूठे, बेतुके और चकित करने वाले होते हैं। उन्होंने बहुत से ऐसे काम
किए हैं जिन्हें तुम सोच भी नहीं सकते। एक गुरु किसी को घर के बाहर फेंक
देगा। अचानक और अकारण गुरु शिष्य को चांटे मारने लगेगा। तुम गुरु के साथ
बैठे थे और सब कुछ ठीक था। तुम गपशप कर रहे थे और वह तुम्हें मारने लगा
ताकि विराम पैदा हो।
अगर गुरु सकारण ऐसा करे तो विराम नहीं पैदा होगा। अगर तुमने गुरु को
गाली दी होती और गुरु तुम्हें पीटता तो पीटना सकारण होता। तुम्हारा मन समझ
जाता कि मेरी गाली के लिए मुझे मार लगी। असल में तुम्हारा मन उसकी अपेक्षा
करता। इसलिए विराम नहीं पैदा होगा। लेकिन याद रहे, झेन गुरु गाली देने पर
तुम्हें नहीं मारेगा। वह हंसेगा, क्योंकि तब हंसी विराम पैदा कर सकती है।
तुम गाली दे रहे थे, अनाप शनाप बक रहे थे, और क्रोध का इंतजार कर रहे थे।
लेकिन गुरु हंसना या नाचना शुरू कर देता है। यह अचानक है और इससे विराम
पैदा होगा। तुम उसे नहीं समझ पाओगे। और अगर नहीं समझ सके तो मन ठहर जाएगा।
और जब मन ठहरता है तो श्वास भी ठहर जाती है।
दोनों ढंग से घटना घटती है। अगर श्वास रुकती है तो मन रुक जाता है, या
अगर मन रुकता है तो श्वास रुक जाती है। तुम गुरु की प्रशंसा कर रहे थे, तुम
अच्छी मुद्रा में थे और सोचते थे कि गुरु प्रसन्न ही होगा। और गुरु अचानक
डंडा उठा लेता है और तुम्हें मारने लगता है, वह भी बेरहमी से, क्योंकि झेन
गुरु बेरहम होते हैं। वह तुम्हें पीटने लगता है और तुम समझ नहीं पाते हो कि
क्या हो रहा है। उस क्षण मन ठहर जाता है, विराम घटित होता है। और अगर
तुम्हें विधि मालूम है तो तुम आत्मोपलब्ध हो सकते हो।
अनेक कथाएं हैं कि कोई बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया जब गुरु अचानक उसे
मारने लगा था। तुम नहीं समझोगे। क्या नासमझी है! किसी से पिटने पर या खिड़की
से बाहर फेंक दिए जाने पर कोई बुद्धत्व को कैसे उपलब्ध हो सकता है? अगर
तुम्हें कोई मार भी डाले तो भी तुम बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हो सकते! लेकिन
अगर इस विधि को तुम समझते हो तो इस तरह की घटनाओं को समझना आसान हो जाता है
पश्चिम में पिछले तीस चालीस वर्षों के दरम्यान झेन बहुत फैला है: फैशन की
तरह। लेकिन जब तक वे इस विधि को नहीं जानेंगे, वे झेन को नहीं समझ सकते।
वे इसका अनुकरण कर सकते हैं, लेकिन अनुकरण किसी काम का नहीं होता। बल्कि वह
खतरनाक है। यह चीज अनुकरण करने की नहीं है।
समूची झेन विधि शिव की चौथी विधि पर आधारित है। लेकिन कैसा दुर्भाग्य कि
अब हमें जापान से झेन का आयात करना होगा; क्योंकि हमने पूरी परंपरा खो दी
है, हम उसे नहीं जानते। शिव इस विधि के बेजोड़ विशेषज्ञ थे। जब वे अपनी बरात
लेकर देवी को ब्याहने पहुंचे थे, समूचे नगर ने विराम अनुभव किया होगा।
देवी के पिता अपनी बेटी को इस हिप्पी के साथ ब्याहने को बिलकुल राजी
नहीं थे। शिव मौलिक हिप्पी थे। देवी के पिता उनके बिलकुल खिलाफ थे। कोई भी
पिता ऐसे विवाह की अनुमति नहीं दे सकता है। इसलिए हम देवी के पिता के खिलाफ
कुछ नहीं कह सकते। कौन पिता शिव से विवाह की अनुमति देगा? और तब देवी हठ
कर बैठी। और उन्हें अनिच्छा से, खेदपूर्वक अनुमति देनी पड़ी।
और फिर बरात आई। कहां जाता है कि शिव और उनकी बरात देखकर लोग भागने लगे।
समूची बरात मानो एल एस. डी, मारिजुआना, भंग और गांजा जैसी चीजें खाकर आई
हो। लोग नशे में चूर थे। सच तो यह है कि एल. एस डी. और मारिजुआना आरंभिक
चीजें हैं। शिव और उनके दोस्तों और शिष्यों को उस परम मनोमद्य का पता था
जिसे वे सोमरस कहते थे। एलडुअस हक्सले ने शिव के कारण ही परम मनोमद्य को
सोमा नाम दिया है। वे मतवाले थे, नाचते, गाते, चीखते चिल्लाते थे। समूचा
नगर भाग खड़ा हुआ। अवश्य ही विराम का अनुभव हुआ होगा।
अशुद्ध के लिए कोई भी आकस्मिक, अप्रत्याशित, अविश्वसनीय चीज विराम पैदा
कर सकती है। लेकिन शुद्ध के लिए ऐसी चीजों की जरूरत नहीं है। शुद्ध के लिए
तो हमेशा विराम उपलब्ध है। विराम ही विराम है। कई बार शुद्ध चित्त के लिए
श्वास अपने आप ही रुक जाती है। अगर तुम्हारा चित्त शुद्ध है शुद्ध का अर्थ
है कि तुम किसी चीज की चाहना नहीं करते, किसी के पीछे भागते नहीं मौन और
शुद्ध है, सरल और शुद्ध है, तो तुम बैठे रहोगे और अचानक तुम्हारी श्वास रुक
जाएगी।
याद रखो कि मन की गति के लिए श्वास की गति आवश्यक है; मन के तेज चलने के
लिए श्वास का तेज चलना आवश्यक है। यही कारण है कि जब तुम क्रोध में होते
हो तो तुम्हारी श्वास तेज चलती है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में कहां
गया है कि मैथुन अतिशय होगा तो तुम्हारी आयु कम हो जाएगी। आयुर्वेद श्वास
से आयु का हिसाब रखता है। अगर तुम्हारी श्वास क्रिया बहुत तीव्र है तो तुम
चिरायु नहीं हो सकते।
आधुनिक चिकित्सा कहती है कि कामभोग रक्तप्रवाह में और विश्राम में
जाने में सहयोगी होता है। और जो लोग कामवासना का दमन करते हैं, वे मुसीबत
में पड़ते हैं, खासकर हृदयरोग के शिकार होते हैं।
आधुनिक चिकित्सा ठीक कहती है। अपनी अपनी जगह आयुर्वेद भी सही है और
आधुनिक चिकित्सा भी; यद्यपि दोनों परस्पर विरोधी मालूम होते हैं। आयुर्वेद
का आविष्कार आज से पांच हजार वर्ष पहले हुआ था। तब आदमी काफी श्रम करता था;
जीवन ही श्रम था। इसलिए विश्राम की जरूरत नहीं थी। और रक्तप्रवाह के लिए
कृत्रिम उपायों की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन अब जिन लोगों को बहुत शारीरिक
श्रम नहीं करना पड़ता है उनके लिए काम भोग ही श्रम है।
इसलिए आधुनिक आदमी के बाबत आधुनिक चिकित्सा सही है। वह शारीरिक श्रम
नहीं करता है, उसके लिए काम—भोग ही श्रम है। काम भोग में उसकी हृदय की
धड़कन तेज हो जाती है, उसका रक्तप्रवाह बढ़ जाता है और उसकी श्वासक्रिया
गहरी होकर केंद्र तक पहुंच जाती है। इसलिए संभोग के बाद तुम शिथिल अनुभव
करते हो और आसानी से नींद में उतर जाते हो। फ्रायड कहता है कि संभोग सब से
बढिया नींद की दवा, ट्रैक्वेलाइजर है। और आधुनिक आदमी के लिए फ्रायड सही भी
है।
कामभोग में, क्रोध में श्वासक्रिया तेज हो जाती है। कामभोग में मन
वासना से, लोभ से, अशुद्धियों से भरा होता है। जब मन शुद्ध होता है, मन में
कोई वासना नहीं होती है, कोई चाह, कोई दौड़, कोई प्रयोजन नहीं होता है, तुम
कहीं जा नहीं रहे होते हो, तुम निर्दोष जलाशय की तरह अभी और यहीं ठहरे हुए
होते हो, कोई लहर भी नहीं होती है, तब श्वास अपने आप ही ठहर जाती
है: अकारण।
इस मार्ग पर क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है, और तुम उच्चात्मा को, परमात्मा को उपलब्ध हो जाते हो।
तंत्र सूत्र
ओशो
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